जेपी आंदोलन से नेता बने और 15 साल में ही बिहार की राजनति पर इस कदर छा गए कि अगले 15 साल राज्य में कोई दूसरा आदमी सत्ताशीन ही नहीं हो पाया. लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के राज में जंगलराज, भ्रष्टाचार, अपराध के दुर्दांत कथाओं के बाद भी वे राज्य की राजनीति में आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं.
भले ही लालू प्रसाद यादव आज के समय में अब अपने दम पर सत्ता दिलाने या पाने में नाकाम साबित हो रहे हैं लेकिन एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि वे सत्ता में हों या फिर विपक्ष में धुरी बनने का माद्दा केवल उन्हीं में ही है. आज भी बिहार की राजनीति में उनकी तूती इस कदर बोलती है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक महीने में तीन बार लालू प्रसाद यादव से मिलने के लिए राबड़ी आवास जाना पड़ता है.
2005 में एक बार राष्ट्रीय जनता दल चुनाव हारी तो फिर कभी सत्ता नसीब नहीं हुई. 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की पार्टी से गठबंधन कर राजद को जीवनदान जरूर दिया, लेकिन आज वहीं नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव की पार्टी के सहारे सरकार चला रहे हैं. हालांकि 2015 के बाद 2017 में ही नीतीश कुमार फिर से भाजपा संग चले गए थे पर 2022 के सावन महीने में फिर से अपने गुरुभाई के साथ हो लिए और तब से महागठबंधन की सरकार बिहार में अनवरत चल रही है.
Lalu Prasad Yadav पर संकट
एक समय ऐसा भी आया जब लालू परिवार संकट में घिर गया था. सरकार जा चुकी थी. लालू प्रसाद यादव जेल चले गए थे और राष्ट्रीय जनता दल के नेता एक एक करके जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो रहे थे. लेकिन यह लालू प्रसाद यादव का ही दिमाग था कि उन्होंने बड़ा दल होते हुए भी राजद और जनता दल यूनाइटेड के बीच मोदी विरोध के नाम पर गठबंधन कराया और वहीं जीवनदान राजद के लिए अमृत समान हो गया. राष्ट्रीय जनता दल पिछले 2 बार से विधानसभा में सबसे बड़े दल के रूप में उभर रहा है. यह अलग बात है कि उसे बहुमत जितनी सीटें हासिल नहीं हो रही है.
किडनी प्रत्यारोपण के बाद भी लालू प्रसाद यादव बीजेपी के लिए बिहार में नासूर बने हुए हैं. बीजेपी जानती है कि जब तक लालू प्रसाद यादव जेल से बाहर हैं, वे कुछ भी कर सकते हैं. कुछ भी मतलब कुछ भी. यही बात नीतीश कुमार भी जानते हैं कि जब तक लालू प्रसाद बाहर हैं, वे महागठबंधन आसानी से नहीं छोड़ सकते.
बिहार ही नहीं, लालू प्रसाद इंडिया गठबंधन की भी धुरी बने हुए हैं. भले ही नीतीश कुमार ने आगे बढ—चढ़कर अपनी महती भूमिका निभाई, लेकिन पर्दे के पीछे से लालू प्रसाद के रोल को कोई नकार नहीं सकता. पटना में जब इंडिया गठबंधन की बैठक हो रही थी तब जो नेता आए, उनमें से अधिकांश सबसे पहले लालू प्रसाद यादव से मिलने उनके आवास पर गए और फिर बैठक के लिए रवाना हुए.
कुल मिलाकर लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) आज भी बिहार की राजनीति के धुरी बने हुए हैं और देश की राजनीति में भी उनका उल्लेखनीय हस्तक्षेप है. कोई मानें या ना मानें.