Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए लकीर खींच दी गई है. कुछ क्षेत्रीय दलों को छोड़ दें तो यह लगभग स्पष्ट हो गया है कि कौन किधर से मैदान में आएगा. एक तरफ NDA है तो दूसरी तरफ पूरे विपक्ष का सामूहिक मंच I.N.D.I.A. हालांकि चुनाव से पहले हो सकता है कि कुछ दल अपना पाला बदल लें, लेकिन कमोबेश तस्वीर यही रहने वाली है.
कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया के बैनर तले विपक्ष NDA के खिलाफ मैदान में होगा. विपक्ष मोदी सरकार (Modi Govt) की नीतियों के खिलाफ मैदान में है. लोकतंत्र बचाने, महिलाओं के सम्मान, किसानों के हक आदि को लेकर विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ हल्ला बोला हुआ है. संसद में कामकाज नहीं हो पा रहे हैं और मणिपुर (Manipur Violence) पर चर्चा कराने के अलावा विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के बयान पर अड़ा हुआ है.
जब मोदी सरकार ने विपक्ष की बात अनसुनी कर दी तो अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है, जिसमें तय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) को समापन संबोधन देना होता है. और जब प्रधानमंत्री का समापन संबोधन होगा तो सोचिए कि तरकश में जितने तीर होंगे, वो निकलेंगे और कोई न कोई घायल होगा, यह निश्चित है. यह सब जानते हुए भी विपक्ष पीएम मोदी के बयान पर अड़ा हुआ है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी मजबूती से चुनाव लड़ने का दावा तो कर रही है पर कर्नाटक चुनावों में मिली अप्रत्याशित हार से वह भी बदली हुई रणनीति के साथ मैदान में उतर रही है. पहले जहां क्षेत्रीय दलों को उतनी तवज्जो नहीं मिलती थी, अब एनडीए की बैठक हो रही है और अपना कुनबा सबसे बड़ा दिखाने की कवायद देखने को मिल रही है.
बीजेपी मोदी सरकार के 9 साल की उपलब्धियों के सहारे लोकसभा चुनाव मैदान में उतरने की बात तो कर रही है पर यह भी दीगर बात है कि किसान सम्मान निधि, उज्ज्वला योजना, हर घर शौचालय, हर घर नल, मुद्रा योजना, कोरोना वैक्सीन, विदेशों में भारत की बढ़ती धाक आदि को भाजपा चुनावों में कई बार भुना चुकी है और इसलिए लोकसभा चुनाव 2024 में ये सब योजनाएं उस तरह कारगर नहीं दिखते, जैसे कि लोकसभा चुनाव 2019 और यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में देखने को मिले थे.
निश्चित तौर पर बीजेपी को एक ऐसे तुरूप के पत्ते की तलाश है जो लोकसभा चुनाव में उसे अप्रत्याशित जीत दिलाए. हो सकता है कि पीएम मोदी और गृह मंत्री के अलावा भाजपा के थिंक टैंक में इस मसले पर विमर्श चल रहा हो, क्योंकि पीएम मोदी भी जानते हैं कि घिसे-पिटे मसलों पर देश का सबसे बड़ा चुनाव नहीं जीता जा सकता.
इस तरह लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भाजपा को एक ठोस प्लान की जरूरत है.
लोकसभा चुनाव 2019 से पहले भाजपा भले ही मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान का चुनाव बुरी तरह हारी थी लेकिन उसके बाद पार्टी ने जिस तरह से डैमेज कंट्रोल किया, उसकी दाद आज भी राजनीतिक विश्लेषक देते रहते हैं.
उस समय दलित उत्पीड़न एक्ट के एक क्लाॅज को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया था. मोदी सरकार ने संविधान संशोधन के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. उसके बाद सवर्ण जो भाजपा का मुख्य आधार वोट माना जाता है, उसकी नाराजगी को दूर करने के लिए सवर्ण आरक्षण विधेयक को सरकार ने संसद में बड़ी ही चतुराई से पास करा लिया था.
उसके बाद पुलवामा की घटना और फिर बालाकोट में एयरस्ट्राइक ने राष्ट्रवाद की ऐसी लहर पैदा की, जिस पर सवार होकर भाजपा ने प्रचंड बहुमत हासिल किया था.
जिस तरह पिछले चुनाव में दलित उत्पीड़न एक्ट में सुप्रीम कोर्ट का फैसला मोदी सरकार के गले की हड्डी साबित हुआ था, उसी तरह इस बार मणिपुर का मसला, खिलाड़ियों के यौन उत्पीड़न के मामले में सांसद बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी न होना, पुरानी पेंशन योजना को लेकर कांग्रेस सरकारों का हठयोग, महंगाई आदि मोदी सरकार के लिए दुखती रग साबित हो रहे हैं.
बेरोजगारी पर तो 9 साल में मोदी सरकार ने कोई आंकड़ा ही नहीं जारी किया कि कितने बेरोजगारों को रोजगार दे पाई और कितनों को सरकारी नौकरी. ये सब मसले भी चुनाव मैदान में उठेंगे और विपक्ष इन सवालों पर मोदी सरकार को घेरने की पुरजोर कोशिश करने वाला है.
हालांकि, मोदी सरकार ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाकर अपने वादे को पूरा कर दिया. अयोध्या में श्रीराम का भव्य राम मंदिर भी बन रहा है और माना जाता है कि चुनाव से ऐन पहले उसका उद्घाटन किया जाएगा. भाजपा इन सब बातों को भी चुनाव में भुनाना चाहेगी पर पार्टी यह भी जानती है कि चुनाव जीतने के लिए केवल ये सब नाकाफी साबित होंगे.
हो सकता है कि मोदी सरकार दशहरा या दिवाली से पहले रसोई गैस सिलेंडर और पेट्रोल-डीजल पर भारी रियायत दे दे, जिसका संकेत पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी दिया है, लेकिन फिर भी कोई न कोई तुरूप का पत्ता ऐसा है, जो पीएम मोदी चुनाव से ऐन पहले लांच करना चाहेंगे. और हां, कांग्रेस चुनाव से पहले न्याय योजना पार्ट 2 भी लांच कर सकती है.
मोदी सरकार को इसका भी भान हो. सरकार अपने तीसरे एजेंडे समान नागरिक संहिता को भी लाना चाहती है लेकिन उसको लेकर न केवल मुस्लिम समुदाय बल्कि देश के आदिवासियों में भी संशय की स्थिति है. अब देखना होगा कि मोदी सरकार चुनाव से ऐन पहले वो कौन सा तुरूप का इक्का फेंकेगी, जिससे कि सारा विपक्ष धराशायी हो जाएगा.