Aditya-L1 का इसरो द्वारा सफल प्रक्षेपण, भारत का पहला सौर मिशन सूर्य के ओर

Aditya-L1 ISRO Launch

भारत का पहला सूर्य का अध्ययन करने वाला अंतरिक्ष आधारित मिशन आदित्य-एल1 (Aditya-L1) का भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) शार, श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी-सी57 द्वारा शनिवार (2 सितम्बर) का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। जैसे ही 23.40 घंटे की उलटी गिनती समाप्त हुई, 44.4 मीटर लंबा पीएसएलवी अंतरिक्ष बंदरगाह से शानदार ढंग से आसमान को चीरते हुए अपने गंतव्य के ओर उड़ गया।

पीएसएलवी-सी57 रॉकेट जैसे ही सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) शार, श्रीहरिकोटा से लांच हुआ, इसरो के वैज्ञानिकों में हर्ष की लहर दौड़ गयी और पूरा कमांड सेंटर तालियों के गड़गड़ाहट से गूँज उठा। लांच के एक घंटे बाद दोपहर 12:55 पर इस्रा ने घोषणा की कि आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान पीएसएलवी रॉकेट से सफलतापूर्वक अलग हो गया।

“PSLV-C57 द्वारा आदित्य-L1 का प्रक्षेपण सफलतापूर्वक पूरा हो गया है। यान ने उपग्रह को ठीक उसकी इच्छित कक्षा में स्थापित कर दिया है। भारत की पहली सौर वेधशाला ने सूर्य-पृथ्वी L1 बिंदु के गंतव्य के लिए अपनी यात्रा शुरू कर दी है,” इसरो ने एक्स पर लिखा।

आदित्य-एल1 के सफल प्रक्षेपण का वीडियो:

अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा, जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर है। लैग्रेंज बिंदु पर, दो बड़े पिंडों (सूर्य और पृथ्वी) का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव एक छोटी वस्तु को उनके साथ चलने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल के बराबर होता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी और सूर्य के बीच पांच लैग्रेंजियन पॉइंट (या पार्किंग क्षेत्र) हैं जहां कोई छोटी वस्तु रखने पर वह वहीं रुक जाती है। लैग्रेंज पॉइंट्स का नाम इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफ-लुई लैग्रेंज के नाम पर उनके पुरस्कार विजेता पेपर – “Essai sur le Problème des Trois Corps, 1772” के लिए रखा गया है। अंतरिक्ष में इन बिंदुओं का उपयोग अंतरिक्ष यान द्वारा कम ईंधन खपत के साथ वहां रहने के लिए किया जा सकता है।

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लैग्रेंज बिंदु 1 के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में रखे जाने के बाद आदित्य-एल1 (Aditya-L1) को बिना किसी ग्रहण या रुकावट के सूर्य को लगातार देखने और अध्ययन करने का मौका मिलेगा। इससे वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव को देखने का अधिक लाभ मिलेगा।