इन दिनों सभी राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव 2024 के लिए तैयारी कर रहे हैं. इस बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चुनाव के लिए मुश्किल फैसला लेते हुए पहले दो सूचियों में लगभग 21 प्रतिशत सांसदों को चुनाव में नहीं उतारा है. पहले दो सूचियों में, भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए 267 उम्मीदवारों का नामांकन किया है और लगभग 21% सदस्यों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने दिखा दिया है कि वह जोर-शोर से चल रहे अपने चुनावी यात्रा को किसी भी तरह से परेशानी में नहीं डालना चाहती है. इतना ही नहीं, पार्टी खुद को सत्ता में बनाए रखने के लिए साहसिक फैसलों को लेने से नहीं चुकती.
प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने पहले ही स्पष्ट किया है कि वे लोकसभा चुनाव २०२४ में 370 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित कर चुके हैं और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ, 545 सदस्यों वाली लोकसभा में 400 सीटों को अपने नाम करने की कोशिश कर रही है.
जीतने की संभावना के मानकों को ध्यान में रखते हुए, भाजपा ने पहले दो सूचियों में कई बड़े नामों को हटा दिया है, जिसमें कई ऐसे नेता भी शामिल हैं जिन्हें विवादास्पद बयान देने के लिए जाना जाता है. सदस्यों को हटाने का यह कदम, पार्टी के विरोध को भी कम करती है और मतदाताओं के क्रोध का सामना करने वाले सांसदों को सीधा मैसेज देती है.
कुछ विवादास्पद सांसद जिन्हें नुकसान उठाना पड़ा है, उनमें से रमेश बिधूड़ी, दक्षिण दिल्ली लोकसभा सांसद, और भोपाल प्रतिनिधि प्रग्या ठाकुर भी शामिल हैं. बिधुरी को लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी के सांसद कुंवर दानिश अली पर इस्लामोफोबिक टिप्पणियाँ करने के बाद हटा दिया गया. वहीं प्रग्या को महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की प्रशंसा का मूल्य चुकाना पड़ा.
कम से कम दो सांसद – गौतम गंभीर (पूर्वी दिल्ली) और जयंत सिन्हा (हजारीबाग) – को पार्टी ने स्पष्ट संकेत दिया कि जन प्रतिनिधि के रूप में उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं था और उन्हें एक बार फिर से टिकट नहीं दिया जाएगा.
सिन्हा को इसलिए भी बाहर का रास्ता दिखा दिया, क्योंकि उन्होंने 2017 में झारखंड के रामगढ़ में एक मांस व्यापारी के लिंचिंग के मामले में आरोपियों की कानूनी शुल्क देने में मदद की थी. इतना ही नहीं उन्होंने छह आरोपियों को जब वे जमानत पर रिहा हो गए, तो उन्हें सम्मानित भी किया था.
भाजपा की पहली सूची में 195 उम्मीदवार हैं, जिसमें 33 सांसदों को हटा दिया गया है, जबकि दूसरी सूची में 72 नाम है, जिसमें कुल 30 विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है.
दिल्ली में भी भाजपा ने बड़े परिवर्तन का सामना किया है, जहां से भाजपा ने केवल उत्तर पूर्वी दिल्ली सांसद मनोज तिवारी को बचा कर रखा है और पांच – हर्ष वर्धन (चांदनी चौक), मीनाक्षी लेखी (नई दिल्ली), पर्वेश साहिब सिंह (पश्चिम दिल्ली), और बिधुरी (दक्षिण दिल्ली) को हटा दिया है.
उसी तरह, महाराष्ट्र और गुजरात की सूचियों से पता चलता है कि पहले 20 नामों में से पांच सांसदों को हटा दिया गया है. वहीं, दूसरे राज्य में घोषित किए गए सात में से चार सांसदों के नाम कट गए हैं.
कर्नाटक में भी भाजपा ने 20 उम्मीदवारों में से 11 सांसदों को हटा दिया है. प्रताप सिम्हा और नलिन कुमार कटील उन दो बड़े नामों में हैं जो राज्य से लोकसभा सांसदों की सूची में शामिल नहीं हो सके.
पार्टी की रणनीति स्पष्ट है – एंटी-इनकंबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) को कमजोर करने के लिए नए चेहरों पर ध्यान दें, विवादस्पद नामों को हटाएं, नए उम्मीदवारों के रूप में आश्चर्य लाकर विपक्ष को चौकन्ना रखें और साथ ही अपने नेताओं को भी यह संदेश दें कि कुछ भी हल्के में नहीं लिया जाएगा.