अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने डोनाल्ड ट्रंप ने माइक वाल्ट्ज को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के रूप में चुना है. वाल्ट्ज को कई लोग चीन विरोधी और भारत समर्थक के रूप में देखते हैं. फ्लोरिडा के हाउस प्रतिनिधि और यूएस आर्मी नेशनल गार्ड में कर्नल माइकल वाल्ट्ज, हाउस इंडिया कॉकस के सह-अध्यक्ष हैं और अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी के प्रबल समर्थक रहे हैं. वे दोनों देशों के बीच एक औपचारिक सुरक्षा गठबंधन के पक्षधर भी हैं.
अमेरिकी कांग्रेस में चीन के खिलाफ सबसे मुखर आवाजों में से एक, वाल्ट्ज ने अक्सर चीन से भारत को होने वाले खतरों को उजागर किया है और चीन-पाकिस्तान गठजोड़ को अमेरिका और भारत दोनों के लिए खतरा बताया है. उन्होंने पिछले साल एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल को भारत का दौरा करवाया और 15 अगस्त, 2023 को लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह में भी भाग लिया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में उनके प्रतिनिधिमंडल की उपस्थिति का उल्लेख किया था.
विशेषज्ञों का मानना है कि उनकी नियुक्ति इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की ओर एक रणनीतिक बदलाव और जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे क्षेत्र के अमेरिकी सहयोगियों को यह संकेत देती है कि नई प्रशासनिक टीम, चीन की महत्वाकांक्षाओं का मुकाबला करने की आवश्यकता को समझती है.
हालांकि, वाल्ट्ज की नियुक्ति से नाटो और अन्य सहयोगियों के साथ अमेरिका के संबंधों को लेकर सवाल उठ सकते हैं. भले ही वे डोनाल्ड ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” रणनीति का हिस्सा हों, लेकिन चीन पर वाल्ट्ज की कठोर नीति, नाटो के साथ तनाव पैदा कर सकती है, क्योंकि कई नाटो सदस्य और यूरोपीय सहयोगी चीन को आर्थिक दृष्टिकोण से देखते हैं.
अगर चीन पर कड़ा रुख रखने वाले रिपब्लिकन सीनेटर मार्को रुबियो को भी विदेश मंत्री के रूप में नियुक्त किया जाता है, तो वाल्ट्ज की नियुक्ति मौजूदा अमेरिकी सहयोगियों में चिंता का कारण बन सकती है.