Chandrayaan-3: मिलिए उन हीरो से जिन्होंने भारत को पहुंचाया चाँद पर

ISRO Scientist Isro Chandrayaan-3

Chandrayaan-3 मिशन की सफलता के पीछे ISRO में इसके प्रोजेक्ट डायरेक्टर पी वीरामुथुवल और उनकी टीम की कड़ी मेहनत है जबकि पूरा ऑपरेशन इसरो चीफ एस सोमनाथ की निगरानी में पूरा हुआ।

इसरो के वैज्ञानिक पिछले 4 साल से चंद्रयान-3 पर काम कर रहे थे। जिस समय देश में कोविड-19 महामारी फैली हुई थी, उस समय भी इसरो की टीम भारत के मिशन मून की तैयारी में जुटी थी।

भारत (India) ने कल (23 अगस्त 2023) को एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज कि और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने वो कर दिखाया जो अब तक दुनिया के किसी देश ने नहीं किया है।

Chandrayaan-3 प्रोजेक्ट की सफल लैंडिंग के पीछे जिन साइंटिस्ट की भूमिका अहम रही। आइए आपको इनके बारे में बताते हैं…

डॉ. एस. सोमनाथ, अध्यक्ष, इसरो

एस सोमनाथ को स्पेस इंजीनियरिंग से जुड़े कई मामलों का एक्सपर्ट माना जाता है। एस सोमनाथ 57 साल की उम्र में ISRO चीफ बने उन्होंने एस बीते साल जनवरी में इसरो चीफ के पद पर नियुक्त हुए थे। सोमनाथ के नाम का अर्थ चंद्रमा का स्वामी है और इन्होने अपना नाम चरितार्थ कर दिया।

इसरो का चीफ बनने से पहले एस सोमनाथ, विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC) के निदेशक ( डायरेक्टर) थे। 23 अगस्त की शाम 6 बजकर 4 मिनट पर जैसे ही (Chandrayaan-3 ) विक्रम लैंडर ने चांद की सतह पर कदम रखा उन्होंने कहा की ” हम अपने मकसद यानी सॉफ्ट लैंडिंग कराने में कामयाब हो चुके हैं”।

उन्होंने बताया, “जब मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए गया, तब मैंने वास्तव में अपने अंदर स्पेस को लेकर रुचि विकसित की. कोई स्पेशलाइजेशन नहीं था. मैं मैकेनिकल इंजीनियर था, जब मैंने ग्रेजुएशन किया. लेकिन कोर्स के दौरान मेरी रुचि Propulsion (Aerospace Engineering) में बढ़ी. मैंने अपने प्रोफेसर से पूछा आप कोर्स में Propulsion शामिल क्यों नहीं करते. उन्होंने कहा कि मैं स्टडी करूंगा और फिर तुम्हें पढ़ाऊंगा. तो ऐसे पहली बार मेरे कॉलेज में Propulsion की पढ़ाई शुरू हुई.”

सोमनाथ का जन्म 1963 में केरल में एक मलयाली परिवार में हुआ। उन्होंने बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से मास्टर की पढ़ाई की है।

डॉ. पी. वीरमुथुवेल, परियोजना निदेशक, चंद्रयान-3

एक रेलवे कर्मचारी के बेटे, डॉ. पी. वीरमुथुवेल का लक्ष्य हमेशा आसमान छूना था। चंद्रयान-३ मिशन की सफलता के पीछे इसरो के सैकड़ों वैज्ञानिकों का हाँथ है पर जो सबसे प्रमुख नाम है वो हैं इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर पी वीरमुथुवेल की। इस प्रोजेक्ट की सम्पूर्ण जिम्मेदारी पी वीरमुथुवेल को मिली थी। जिसे उन्होंने बखूबी निभाया।

बता दें की 2019 में इन्हें इस प्रोजेक्ट का डायरेक्टर बनाया गया, उससे पहले वो इसरो मुख्यालय में ही स्पेस इंफ्रास्ट्रक्चर कार्यक्रम के डिप्टी निदेशक थे। वीरमुथुवेल के बारे में कहा जाता है कि तकनीकी दक्षता में उनकी कोई सानी नहीं है, इससे पहले चंद्रयान 2 मिशन में भी उन्होंने बहुत ही जिम्मेदारी के साथ इसे निभाया था।

इन्होने अपनी स्नातक की पढ़ाई आईआईटी मद्रास से पूरी की। वह अपनी दूरबीन का उपयोग करके चंद्रमा पर चंद्रयान 2 फ़्लोटसम और जेट्सम खोजने के लिए प्रसिद्ध हो गए। 2023 में Chandrayaan-3 को रवाना करने के पीछे उनका दिमाग था।

उन्होंने इस पद पर एस सोमनाथ का स्थान लिया, जिन्होंने जनवरी 2022 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला था।

एडॉ. एस. उन्नीकृष्णन नायर, निदेशक, विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र

चंद्रयान-3 की सफलता में एस. उन्नीकृष्णन नायर ने भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जीएसएलवी मार्क 3 जिसे एलवीएम 3 नाम दिया गया उसके निर्माण में इनकी अहम भूमिका रही है, थुंबा स्थित विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर से इनका नाता है।

इन्होंने अपनी टीम के साथ जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच व्हीकल (जीएसएलवी) मार्क-3 को तैयार किया। इसे ही ‘लांच व्हीकल मार्क-3’ के नाम से बार-बार संबोधित किया गया। नायर ‘गगनयान’ कार्यक्रम के लिए इसरो द्वारा बेंगलुरू में स्थापित मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र (Human Space Flight Centre) का नेतृत्व कर रहे हैं। वे अभी इस पद पर बने रहेंगे।

डॉ. एस. उन्नीकृष्णन नायर भारत के रॉकेट केंद्र विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के प्रमुख एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक होने के साथ-साथ एक मलयालम लघु कथाकार भी हैं।

एम. शंकरन, निदेशक, यू आर राव सैटेलाइट सेंटर

वैज्ञानिक एम. शंकरन ने 1 जून, 2021 को इसरो के सभी उपग्रहों के डिजाइन, विकास और कार्यान्वयन के लिए देश के अग्रणी केंद्र, यू आर राव सैटेलाइट सेंटर (यूआरएससी) के निदेशक के रूप में पदभार संभाला।

शंकरन ने कहा, “मैं चंद्रयान-3 की टेक्सटबुक जैसी लॉन्चिंग और प्लेसमेंट प्रदान करने के लिए एलवीएम3 टीम को धन्यवाद देता हूं। हम इस मिशन को सफल बनाने के लिए पिछले चार सालों से दिन रात मेहनत कर रहे थे और आख़िरकार हमे उसमे सफलता हासिल हुई।

वे वर्तमान में संचार, नेविगेशन, रिमोट सेंसिंग, मौसम विज्ञान और अंतर-ग्रहीय अन्वेषण जैसे क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के उपग्रहों के लिए नेतृत्व कर रहे हैं।